Thursday, November 7, 2013

Ik adad zindagee

इक अदद ज़िंदगी का पैराहन 
सिमट रहा है ज़मींदोज़ कुहासे की तरह 
तमाम उम्र  के घाटे को जो चुका न सका 
बन्द मुट्ठी के तंगहाल मुनाफ़े की तरह 

मगर क़ुबूल नहीं  आज भी शिकश्त मुझे 
कश्मकश  जारी रहेगी हत्तुल इम्काँन 
होश क़ाबू  में हैं जिस हाल में जिस लम्हा तक 
मैं रचाता  रहुँगा कोइ न कोइ उन्वान 

फिर तो क़ुदरत का  करिष्मा मुझे संभालेगा 
वास्ता कायनात  का है इत्ना 
फिर तो ज़ेबायेशे  दरिया क़ी  लहर  ओढ़ेगी 
ज़माँ  दराज़ का भारी  सपना 

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